मंगलवार, 29 नवंबर 2016

क्या श्रीराम नित्य मृगो का शिकार करते थे?

राम चरित मानस के बाल काण्ड में प्रभु के मृगया का प्रसंग आया है:-

बंधु साख सँग लेहि बोलाई। बन मृगया नित खेलहिं जाई।।
पावन मृग मारहिं जियँ जानी। दिन प्रति नृपहि देखावहिं आनी।।

मानस का अवलोकन करने वाले कुछ जिज्ञासु श्रीरामचन्द्रजी के बाल लीला प्रसंग की इस चौपाई को पड़ने के बाद यह शंका प्रकट करते है की क्या श्रीराम नित्य पशुओ की हिंसा या शिकार करते थे?

यदि हम इस चौपाई को सामान्य दृष्टि से पढ़े तो प्रश्न ठीक है। परंतु यदि हम इसके रहस्य पर चिंतन करे तब यह बात सामने आती है की श्रीराम मृगो का नहीं बल्कि पावन मृग का शिकार करते थे। अर्थात पूर्व जन्मों के पवित्र श्रापित जिव जो की अपने उद्धार के लिए रामावतार में मृग योनि धारण किये , प्रभु उनका शिकार करते है और प्रभु के हाथो शिकार हो कर वे श्रापित जीव देवलोक को प्राप्त करते है। 
यथा:-
जे मृग राम बान के मारे। ते तनु तजि सुरलोक सिधारे।।

स्पष्ट है की प्रभु ने जिन मृगो का शिकार किया वे सभी देवलोक में जा कर देवत्व को प्राप्त किये। अतः हमारा निवेदन यह है की प्रभु ने चुकी क्षत्रिय कुल में अवतार लिया था अतः क्षत्रिय मर्यादानुसार उन्होंने शिकार लीला की, परंतु केवल ऐसे जीवो को मार जिनका उद्धार उनके हाथो नियत था और उन मृगो को अपने पिता दशरथ जी को दिखाने इस लिए ले जाते थे ताकि वो श्रीराम की माधुर्यमयी बाल लीला का और वात्सल्य रास का आनंद ले सके।


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