सनातन हिन्दू धर्म में तीर्थयात्रा का अपना अलग ही महत्त्व है। हम सभी प्रायः किसी न किसी तीर्थ स्थान के यात्रा करते है। पर यात्रा करते समय क्या करे और क्या ना करे ये जानना आवश्यक है:-
1 जो तार देने में समर्थ होता है वह तीर्थ कहलाता है।
2 तीर्थ यात्रा में मांस, मैथुन, जानदार सवारी, छाता, जुता पहनकर यात्रा नहीं करनी चाहिए।
3 पृथ्वी पर सोना चाहिए।
4 एक समय भोजन करना चाहिए।
5 स्नान से पूर्व प्रणाम व् प्राथना करना चाहिए।
6 लड़ाई, परनिंदा, द्वेष आदि छोड़ देना चाहिए।
7 बाल बच्चों का स्मरण नहीं करना चाहिए।
8 साबुन व् तेल का उपयोग नहीं करना चाहिए।
9 साबुन से कपडे नहीं धोना चाहिए।
10 दान करना चाहिए।
11 अप्रिय नहीं बोलना चाहिए।
12 जल में दातुन, कुल्ला, मल-मूत्र आदि का त्याग नहीं करना चाहिए।
13 तीर्थयात्रा का प्रयोजन केवल अंतःकरण की शुद्धि और आत्म कल्याण ही होना चाहिए।
1 जो तार देने में समर्थ होता है वह तीर्थ कहलाता है।
2 तीर्थ यात्रा में मांस, मैथुन, जानदार सवारी, छाता, जुता पहनकर यात्रा नहीं करनी चाहिए।
3 पृथ्वी पर सोना चाहिए।
4 एक समय भोजन करना चाहिए।
5 स्नान से पूर्व प्रणाम व् प्राथना करना चाहिए।
6 लड़ाई, परनिंदा, द्वेष आदि छोड़ देना चाहिए।
7 बाल बच्चों का स्मरण नहीं करना चाहिए।
8 साबुन व् तेल का उपयोग नहीं करना चाहिए।
9 साबुन से कपडे नहीं धोना चाहिए।
10 दान करना चाहिए।
11 अप्रिय नहीं बोलना चाहिए।
12 जल में दातुन, कुल्ला, मल-मूत्र आदि का त्याग नहीं करना चाहिए।
13 तीर्थयात्रा का प्रयोजन केवल अंतःकरण की शुद्धि और आत्म कल्याण ही होना चाहिए।
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