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मंगलवार, 27 दिसंबर 2016

श्रीराम का स्वरुप क्या है?

मानस के बालकाण्ड में एक प्रसंग आता है जब श्रीराम जी को माता जानकी और भैया लक्ष्मण सहित वनवास हुआ तब वनवास के समय श्रीराम वाल्मीकि जी के आश्रम में पहुचे। वहाँ वाल्मीकिजी ने श्रीराम सहित माता सीता और लक्ष्मण के स्वरुप का वर्णन किया है:-

छन्द - श्रुति सेतु पालक राम तुम्ह जगदीस माया जानकी।
जो सृजति जगु पालति हरति रुख पाइ कृपानिधान की॥
जो सहससीसु अहीसु महिधरु लखनु सचराचर धनी।
सुर काज धरि नरराज तनु चले दलन खल निसिचर अनी॥

सोरठा - राम सरूप तुम्हार बचन अगोचर बुद्धिपर।
अबिगत अकथ अपार नेति नेति नित निगम कह

वाल्मीकि जी स्तुति करते है कि हे राम! आप वेद की मर्यादा के रक्षक  स्वयं भगवान् जगदीश्वर विष्णु है और आप की पत्नी स्वरुप जानकी और कोई नहीं बल्कि आपकी स्वरूप भूता माया ही हैं, जो आपकी कृपा और आश्रय पाकर जगत का सृजन, पालन और संहार करती हैं। जो हजार मस्तक वाले सर्पों के स्वामी और पृथ्वी को अपने सिर पर धारण करने वाले भगवान् अनंत हैं, वही चराचर के स्वामी शेषजी लक्ष्मण के रूप में आपको भाई स्वरुप प्राप्त हैं। देवताओं के कार्य के लिए आप राजा का शरीर धारण करके दुष्ट राक्षसों की सेना का नाश करने के लिए आपने अवतार लिया है और वन को चले हैं।

आगे वाल्मीकि जी श्रीराम के स्वरुप का वर्णन करते हुए कहते है की हे राम! आपका यह मंगलमय स्वरूप वाणी द्वारा व्यक्त नहीं किया जा सकता है, आप का स्वरुप सांसारिक बुद्धि से परे है, आपकी लीलाओ को कोई व्यक्त नहीं कर सकता, आपकी महिमा अकथनीय और अपार है और वेद भी आप के स्वरुप का वर्णन 'नेति-नेति' (जिसका कोई अन्त न हो) कह कर करते हैं।




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